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पत्र-व्यवहार निर्देशिका
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भारतीय राजभाषा के रूप में संवैधानिक रूप में महत्ता पाकर हिन्दी का अपेक्षित स्वरूप अभी तक स्थापित नहीं हो सका था। कार्यालयों में राज्यादेशों के कारण इसे महत्त्व मिला अवश्य है, पर अभी तक राष्ट्रभाषा और राजभाषा का प्रचलन जिस गति से जन-सामान्य से इतर छात्रों, सेवारत कर्मचारियों एवं अधिकारियों में होना चाहिए था, नहीं हो सका है। विश्वविद्यालय में सामान्य हिन्दी के नाम पर प्रचलित पाठ्यक्रम एवं तद्माध्यम से उपाधिप्राप्त स्नातक कितने उपयोगी हैं, इसका ज्ञान इससे प्रमाणित हो जाता है कि छात्र एक आवेदन-पत्र शुद्ध भाषा एवं सही रूप में लिख पाने में असमर्थ रहता है, फिर ! किसी कार्यालय में लिपिक वर्ग में नियोजित होकर वह क्या योग्यता प्रदर्शित कर सकता है? इसी चिन्तन के आधार पर विश्वविद्यालय में नवीन पाठ्यक्रम तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में कार्यालयीय पत्र-लेखन आदि के निर्धारण से व्यावहारिक हिन्दी का महत्त्व बढ़ गया है। व्यावहारिक हिन्दी सम्बन्धी ज्ञान के लिए अनेक प्रकार की उपलब्ध पुस्तकों के बीच अभी तक ऐसी पुस्तक का अभाव था, जो कार्यालय के पत्र-व्यवहारादि के लिए पूर्ण उपयोगी सिद्ध हो सके। इसी दृष्टि से इस पुस्तक का प्रणयन किया गया है।
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BHOLANATH TIWARI

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