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मैत्री
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बहुत सारी कविता सदियों से जगहों के बारे में होती आयी है। पर ऐसी भी कविताएँ हुई हैं जो जगह बनाती हैं : अपनी जगह रचती हैं। वह जगह कहीं और नहीं होती न ही जानी-पहचानी जगहों से मिलती-जुलती है। वह सिर्फ़ कविता में होती है। तेजी ग्रोवर के इस नये कविता संग्रह की कविताएँ मिलकर ऐसी ही जगह गढ़ती हैं। उनकी चित्रमयता, अन्तर्ध्वनियाँ और अनुगूँजे इधर-उधर की होते हुए भी उस जगह का सत्यापन हैं जो कविता से रची गयी है। दुख, अनगढ़ मृत्यु, सियाह पत्थर पर शब्द, कठपुतली की आँख, क्षिप्रा की सतह पर काई, हरा झोंका, श्वेताम्बरी, लौकी-हरा गिरगिट, शब्दों की आँच, एक बच्चे का सा उठ जाता मन, देहरियों पर नाचती हुई ओस की रोशनी, सूर्य की जगह कोयले, सितारों के बीच अवकाश आदि मिलकर और अलग-अलग भी उस जगह को रोशन करते हैं जो कविता ही बना सकती है। इन कविताओं में परिष्कार और परिपक्वता है। भाषा निरलंकार है, चित्रमय लेकिन दिगम्बर। उसमें संयम भी है और अधिक न कहने का संकोच भी। यह ऐसी कविता है जो संगीत की तरह मद्धिम लय में अपना लोक गढ़ती है और आपको धीरे-धीरे घेरती है पर ऐसे कि आप आक्रान्त न हों। वह भी बचे और आप भी बचें। उसकी मैत्री यही है कि वह मुक्त करती है क्योंकि वह मुक्त है। उसकी हिचकिचाती सी विवक्षा उसकी मुक्ति है। तेजी ग्रोवर की ये कविताएँ आज लिखी जा रही ज़्यादातर हिन्दी कविताओं से बिल्कुल अलग हैं। यह उन्हें एक ऐसी आभा देता है जो नाटकीय नहीं शान्त और मन्द है, लगभग मौन जैसा। वह आपको चकाचौंध और चीख-पुकार से हल्के से हाथ पकड़कर उधर ले जाती है जहाँ कुछ मौन है, कुछ शब्द हैं और कुछ ऐसी जगह जहाँ आप शायद ही पहले गये हों। -अशोक वाजपेयी
About the writer
ED. TEJI GROVER

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