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ओडिया महाभारत :आदिपर्व - 1
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उड़िया साहित्य में सारलादास एक ऐसे लेखक हैं, जिनकी लेखनी साहित्य का अर्थ केवल 'जीवन' समझती थी। उत्कल के महान कृषक कवि सारलादास संस्कृत महाकाव्य के नायक नायिकाओं को इसी प्रकार अपने जीवन्त रक्त-मांस रीति में चित्रित कर जाते हैं। कवि अपने समग्र महाकाव्य को एक हिन्दू जन की देवी की दृष्टि के नीचे ही लिखते चला है। उसके रहते, उनकी कृषक प्रतिभा को अपने धर्म अनुयायी संस्कृत महाकाव्य के विराट नायक नायिकाओं को हिमालय की उच्चता से खींचकर गाँव के कीचड़युक्त पथ पर चला पायी है, इसीलिए यह विराट शूद्र सबके लिए नमस्य है। सारला को पाण्डित्य भिज्ञता का ज़रा भी अहंकार न था। वे बारम्बार अपने निम्न जन्म, विद्याहीनता और बुद्धिहीनता का उल्लेख करते हैं; किन्तु सत्य या विनय के नीचे एक उच्चकोटि की साहित्यिक सृजनशक्ति उनके भीतर जाग्रत थी। शायद वे उसे स्वयं भी नहीं जानते थे। सारला महाभारत एक स्वतन्त्र और अभिनव सृष्टि है। सारला का प्रचण्ड कवित्व और प्रतिभा ने इसको एक नूतन महाभारत में परिणति करके इस महाकाव्य को अधिक संवेदनशील कर दिया है।
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