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भारतीयता की पहचान
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'भारतीयता की पहचान' में डॉ. विद्यानिवास मिश्र के पिछले वर्षों में दिये गये कुछ व्याख्यान और निबन्ध संकलित हैं। इन सभी में भारत की उदारता और व्यापक विश्व-दृष्टि को पहचानने की कोशिश की गयी है। श्रेष्ठ निबन्धकार डॉ. मिश्र भारतीयता की पहचान को अपनी ही पहचान मानते हैं और इसकी सार्थकता को निरन्तर अनुभव करते हुए विश्व संस्कृति को समझने के लिए भारतीय संस्कृति को माध्यम बनाते हैं। इन निबन्धों में देशीय या जातीय आग्रह नहीं है, केवल भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य के विश्व संस्कृति को समझने की एक ललक, एक आकांक्षा है। कुमारस्वामी के तात्त्विक तथा कलात्मक चिन्तन से आरम्भ करके निबन्धकार यहाँ लोक और शास्त्र, मनुष्य और उसके परिवेश, विज्ञान और साहित्य के साथ शिव, मातृदेवी का विवेचन करके होली, नवरात्र, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी आदि भारतीय त्यौहारों के विवेचन तक आता है। भारतीय एकता और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के परिप्रेक्ष्य में हिन्दू होने का सही अर्थ बताते हुए वह हिन्दू धर्म और संस्कृति को उसकी जड़ों तक खोलता है।
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VIDYANIWAS MISHRA

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