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लिली रे ने आभिजात्य वर्ग से लेकर सामान्य वर्ग तक के लोगों को ले कर कहानियाँ लिखी हैं। यह उनकी लेखनी का कमाल है कि हर वर्ग के पात्र और परिस्थितियाँ उनके हाथों अविस्मरणीय व अद्भुत बन जाते हैं। भाव, भाषा, सरलता व सहजता की तरल धार में बहती इनकी कहानियाँ अपने अन्त में पाठकों को बहुत बुरी तरह चौंकाती हैं, चेखव की कहानियों की तरह। इस संग्रह की अधिकांश कहानियाँ दार्जिलिंग व उसके आसपास के इलाकों की पृष्ठभूमि पर लिखी हुई हैं। जगह-जगह प्रवास करती लिली रे जिस स्थान पर रहीं. वहाँ के लोगों को अपनी कथा का विषय बनाया। इस तरह से मैथिली में वे प्रवासी साहित्य रचती रही हैं। लिली रे की कहानियों की उपमा भोर की हरी दूब पर पड़ी ओस की बूंदों से की जा सकती है, जिन पर नंगे पाँव चलते हुए आपको एक सर्द गुनगुनी नमी का अहसास होता है। ओस कहने को आपके तलवों को छूती है, परन्तु वस्तुतः उसका असर दिल और दिमाग तक पहुँचता है। किसी भी कहानी की सफलता है कि आप उसे एक बैठक में पढ़ जाएँ। सफलता की यह वीणा लिली रे की हर कहानी में झंकृत होती है। इनकी कहानियाँ विश्व की चुनिंदा कहानियों के समकक्ष रखी जा सकती हैं।
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Lili Ray Translated by Vibha Rani

Books by Lili Ray Translated by Vibha Rani
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