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भाषा और व्यवहार
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व्यावहारिक भाषाविज्ञान को लेकर हिन्दी में जिन विद्वानों ने निरन्तर सोचा और उस पर काम किया, डॉ. ब्रजमोहन का नाम उनमें आदरपूर्वक लिया जाता है। इस सन्दर्भ में उनकी अनेक पुस्तकें हिन्दी में समादृत हैं; और यह उस शृंखला की नयी कड़ी है। भाषा-व्यवहार के जितने भी अंग-उपांग हैं, यह कृति उन्हें अत्यन्त सरल, सुसंगत और रोचक शैली में सामने रखती है। अध्ययनपरक सुविधा की दृष्टि से लेखक ने इस कृति को तीन भागों में नियोजित किया है-एक, संज्ञा-प्रयोग; दो, क्रिया-प्रयोग और तीन, वर्तनी और उच्चारण। इससे स्वतः सिद्ध है कि यह पुस्तक व्यावहारिक भाषाविज्ञान के अत्यंत महत्त्वपूर्ण पक्षों पर एक साथ विचार करती है। डॉ. ब्रजमोहन के कार्य के साथ जो एक अनन्य विशेषता जुड़ी हुई है, वह है विषय-विवेचन की लोक परक संस्कारशीलता। इससे भाषा-व्यवहार की जटिल। से जटिल गुत्थियाँ और बारीकियाँ भी प्रयोगकर्ता के। लिए रोचक और सरल हो उठती हैं। संज्ञा, क्रिया, वर्तनी और उच्चारण आदि भाषा के लिखित और मौखिक व्यवहार-दोनों ही स्तरों पर यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है, खासकर इस दिशा में कार्य कर रहे। विद्वानों, अध्येताओं, शोधार्थियों, छात्रों और जिज्ञासु पाठकों के लिए।
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BRIJ MOHAN

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