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किस्सा : एक से एक
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सन् 1947 की बात है। भारत का विभाजन हो रहा था। आबादी की अदला-बदली के सिद्धांत को अवांछनीय तथ्य के रूप में स्वीकार कर लिया गया था। दो मार्ग निर्धारित कर लिए गए थे : एक पाकिस्तान से हिंदुस्तान आने के लिए, दूसरा हिन्दुस्तान से पाकिस्तान जाने के लिए। प्रवासियों की संख्या हज़ारों में नहीं, लाखों में थी। इतने बड़े पैमाने पर प्रवासन संसार के अन्य किसी भाग में न हुआ होगा। पाकिस्तान के लाखों निवासियों को घर छोड़कर हिन्दुस्तान आना पड़ा। यदि वहीं पर रहते तो न जाने कितनों की हत्या और हो जाती। किसी के माँ-बाप मारे गए, किसी के बच्चे, किसी की पत्नी, किसी की बहन। जो भी वहाँ से चल सके, चल दिए। यदि इतना समय मिला कि घर का कुछ सामान उठा सके तो उठा लिया। किसी के हाथ में एक डोलची थी, किसी के हाथ में बक्सा किसी ने सिर पर खाट रख ली और उस पर जितना सामान अँटा सकते थे, अँटा लिया। प्रलय का दृश्य दिखाई दे रहा था। कहीं रास्ते में ही किसी गर्भिणी को प्रसव वेदना आरम्भ हो गई। उसके सगे सम्बन्धी, जो भी साथ थे,उसे घेर कर खड़े हो गए। प्रसव होते ही फिर चल दिए। ऐसे में न जाने कितने बच्चे मर गए, कितनी जच्चाएँ काल कवलित हो गई।
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BRIJ MOHAN

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